तेरी दुनिया का हर दस्तूर हो जाऊँ
मैं तेरी माँग का सिन्दूर हो जाऊँ
मेरी आँखें रही हैं मुन्तज़िर कब से
तेरी आँखों का कब मैं नूर हो जाऊँ
तेरी चाहत में बदनामी बहुत पाई
चली आ, अब ज़रा मशहूर हो जाऊँ
तेरे आने से घर में रोशनी कुछ हो
तेरे आने से कुछ मगरूर हो जाऊँ
'तख़ल्लुस' को कभी कुछ शाइरी आए
सियाही-ओ-सफ़े से दूर हो जाऊँ
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०१:२९ पूर्वाह्न, १३ नवम्बर २०१४
वाह कमाल के शेर हैं सभी ग़ज़ल के ... बधाई ...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना। काफी दिनों से कोई नई पोस्ट नहीं आई। क्या बात है। सक्रिय लेखन करते रहें जनाब।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना की प्रस्तुति।
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