Monday, May 18, 2015

अकेली ..

कई दिनों बाद आज बैठे-बैठे ग़ज़ल हो गयी...अरसे बाद वियोग शृंगार लिखा गया..देखें ... :)

"कच्ची दुपहरियों में जामुन के नीचे
वह बाट जोहती घूँघट पट को खींचे

आँसू की खेती उग आती नयनों में
वह साँझ ढले गोधूलि-कणों को सींचे

चाँदनी रात में बाल पके हैं उसके
पर ड्योढ़ी की लौ अपनी चमक उलीचे

प्रिय की आहट पाने को आतुर होकर
मन-महल बिछाती हर दिन लाल गलीचे

हर रात मगर सूनी-सूनी कटती है
फिर भोर चली आई हथेलियाँ भींचे"
_________________________________
०३:५२ अपराह्न, १८ मई २०१५

4 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ४२ साल की क़ैद से रिहाई - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. सुंदर लफ़्ज़ों में सजी ग़ज़ल।

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  3. मनमहल बिछाती लाल गलीचे,
    बहुत खूबसूरत । विरह की सुंदर अभिव्यक्ति।

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आपके विचार ……

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