… एक प्रयास … अपनी अधखुली आँखों से अपने अन्तर में झाँकने का … और … उन गहराइयों को शब्दों के साँचे मे ढालने का … …मेरी अन्तर्गवेषणा…
Tuesday, August 11, 2020
श्रीजगन्नाथाष्टम्
Monday, August 03, 2020
श्रीरामाष्टकम्
Sunday, January 19, 2020
चलो तुम ...
काश्मीरी पण्डितों के पलायन की तीसवीं बरसी पर ...
बीते जो बरस तीस वो लाने को चलो तुम
आईन के असबाब बचाने को चलो तुम
तस्कीन-भरी मुल्क में होती थी सियासत
सच्चाई को कब्रों से जगाने को चलो तुम
बिस्मिल की निगाहें हों या अशफ़ाक़ का मरकज़
रस्ते जो तराशे वो सजाने को चलो तुम
ताबीर है वहमों की जो सत्ताओं ने गढ़े
इस बात को पुरज़ोर जताने को चलो तुम
जमहूर की ताक़त को मिटाया गया बरसों
जमहूर की ताक़त को पढ़ाने को चलो तुम
जो क़र्ज़ भगत-सों का चढ़ा सैंकड़ों सालों
लाज़िम है उसे अब तो चुकाने को चलो तुम
जाने की कभी बात भी उठनी ही नहीं है
जी अपना जो पुरखों से लगाने को चलो तुम
ज़िन्दान में बेदम थे हुकूमत के हाथ-पाँव
हरक़त है सो दीवार ढहाने को चलो तुम
लम्हों की ख़ताओं ने दीं सदियों की सज़ाएँ
इतिहास की सीखों को सिखाने को चलो तुम
जो अस्ल है मेरा उसी परचम के तीन रङ्ग
चौथे से हैं इस बात को गाने को चलो तुम
वादा है वही जो कि रहे सच की समाअत
सदक़ों की सदाक़त को निभाने को चलो तुम
~ क़ौस