पिछले साल लिखे इस गीत को पोस्ट नहीं करने का सोचा था। मगर एक मित्र के आग्रह पर आज कर दिया... :)
बहता सरल समीर तुम्हारी आँखों में
बनती एक नज़ीर तुम्हारी आँखों में
बनती एक नज़ीर तुम्हारी आँखों में
धीरे-धीरे ज्यों-ज्यों खुलती जाती हैं
सुबह की किरणों सी रँगती जाती हैं
सागर सी तस्वीर तुम्हारी आँखों में
सुबह की किरणों सी रँगती जाती हैं
सागर सी तस्वीर तुम्हारी आँखों में
दुनिया भर की सारी दौलत फ़ानी है
बस इसकी खातिर जीना नादानी है
मेरी सब जागीर तुम्हारी आँखों में
बस इसकी खातिर जीना नादानी है
मेरी सब जागीर तुम्हारी आँखों में
दीवाली के जगमग दीपों से ज़्यादा
होली के सारे रंगों से भी ज़्यादा
त्यौहारी तासीर तुम्हारी आँखों में
होली के सारे रंगों से भी ज़्यादा
त्यौहारी तासीर तुम्हारी आँखों में
जो भी देखूँ, दिखकर भी अनदेखा है
अनजाने में खिंचती कोई रेखा है
अम्बर सी गम्भीर तुम्हारी आँखों में
अनजाने में खिंचती कोई रेखा है
अम्बर सी गम्भीर तुम्हारी आँखों में
माथे पर भी नहीं और न हाथों में
नहीं किसी पत्री की लम्बी बाँचों में
है मेरी तकदीर तुम्हारी आँखों में
नहीं किसी पत्री की लम्बी बाँचों में
है मेरी तकदीर तुम्हारी आँखों में
पिघल-पिघल कर यादें जब बहना चाहें
पलकों को धोकर ठहरे रहना चाहें
नीर बना सब क्षीर तुम्हारी आँखों में
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०९:४१ अपराह्न, २२ अक्टूबर २०१४
पलकों को धोकर ठहरे रहना चाहें
नीर बना सब क्षीर तुम्हारी आँखों में
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०९:४१ अपराह्न, २२ अक्टूबर २०१४
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