..अब इस बार कुछ थोड़ा सा अलग...
न सुनने को कुछ है, न कहने को कुछ है
न तो आज दिल के बहकने को कुछ है
मेरी आरज़ू की बुलन्दी की खातिर
न दरिया मेँ कुछ है, न सहरा मेँ कुछ हैबताए ज़रा चाँद को भी तो कोई
न उसकी चमक मेँ दहकने को कुछ है
सूरज से कह दो मशालेँ जला ले
अभी और उसमेँ न जलने को कुछ है
गलतफ़हमियोँ मेँ है फूलोँ की बस्ती
कि हर पल वहाँ पर महकने को कुछ है
कँटीली सड़क पर ज़रा चल के देखो
तो मालूम होगा लहकने को कुछ है
बच्चे की किलकारियोँ की तरह से
अभी ज़िन्दगी मेँ कहकने को कुछ है
वो चिड़ियोँ के जैसे अभी घोँसलोँ मेँ
नयी भोर है तो चहकने को कुछ है