Saturday, August 02, 2014

पहली ही झलक ने...

सबको ही मुहब्बत ने तो मजबूर किया है
तुझको न किया हो, मुझे ज़रूर किया है

उस शाम को दिखी तेरी पहली ही झलक ने
आँखों को मेरी तब से पुरसुरूर किया है

अपलक निहारता हूँ मैं लेटा हुआ छत को
इस काम ने मुझको बड़ा मसरूफ़ किया है

सब यार मेरे रश्क भी करने लगे हैं अब
अपनी पसंद ने मुझे मगरूर किया है

थोड़ा सा दिन तो दे, ज़रा सी रात भी दे दे
अब तक न तुझे चैन से महसूस किया है

ख़्वाबों की मस्तियों का तो सुना भी था मगर
उम्मीद की मस्ती ने भी मशगूल किया है

मिलने की एक बार मुझे और सज़ा दे
लिखने का तुझे कलम ने कुसूर किया है
_____________________________
1752 Hours, Friday, August 01, 2014

मेरी आवाज़ में सुनें, यहाँ...>>...

8 comments:

  1. पहला नशा पहला प्यार सी सुन्दर प्यारी रचना

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  2. सुंदर प्रस्तुति...
    दिनांक 04/08/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
    हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
    हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
    सादर...
    कुलदीप ठाकुर

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  3. खूबसूरत शेर हैं इस ग़ज़ल के सभी ... लाजवाब ...

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  4. बहुत सुन्दर गज़ल

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  5. सभी अशआर लाज़वाब...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल..

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  6. प्यार की रंगत जब रंग लाने लगती है , तो ऐसा ही होता है

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आपके विचार ……

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