Tuesday, August 13, 2013

भारत

भारत! संज्ञा नाम है
कर्ता है, निष्काम है
कर्म भी, क्रिया भी, तु ही
रमने वाला राम है

तेरा भाव सुगीत है
कारक- परमपुनीत है
जीवन की आशा लिए
गौरवमयी अतीत है

तेरा ही अभिमान हो
तेरा सुयश बखान हो
एक यही अभियान हो
तुझमें रत मन-प्राण हों

देश! तुझे वरदान है
दर्शन का सुज्ञान है
ईश्वर का, महिमामयी 
कण-कण का शुभगान है

भाषा-बन्ध अटूट है
प्रकृति-कोष अकूत है
विचारज्ञ! तुझमें स्वयं
भविष्य भी आहूत है 

तू नर का स्वाकार है
उपनिषदों का सार है
निराकार बहता यहाँ
होकर नीराकार है

देश-प्रेम ही धर्म है
सबसे गहरा मर्म है
इसमें रक्खूँ आस्था
यही सुपूजित कर्म है
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Written : 2141 Hours, Tuesday, August 13, 2013

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