Sunday, September 01, 2013

आओ..!

अन्धा है कानून, न इसको दीखे
लम्बे हाथों से भी किसको खींचे?

संविधान अविधान हुआ जाता है!

भारत का निर्माण हुआ जाता है!


Courtesy: Google

आयुर्बन्धन की यह विषम कड़ी है
जघन्य अपराधों को छूट बड़ी है

भारत की बेटियाँ सिसकती जायें

हम क्यों हाथ धरे बैठे रह जायें?

निज-कर्तव्यों की कर लें अब रक्षा

इतिहासों ने नहीं किसी को बख्शा

बदलें गीता लोकतन्त्र की, आओ!

सीता को सुपुनीता करने आओ!

~चेतस

०५:२८ अपराह्न, रविवार, ०१ सितम्बर २०१३
राँची, झारखण्ड

3 comments:

  1. वाकई कानून अंधा ही हो गया है..

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  2. बहुत अच्छी रचना ! आपको बहुत बहुत बधाई !


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