Thursday, October 25, 2012

तासीर.. ! ?

अपनी तन्हाइयों से  मुहब्बत करो
अब चलो ग़म ग़लत करके आगे बढ़ो 


ये इशारे जो करती हैं खामोशियाँ
इनको समझो, परखने की जिद ना करो 


इन हवाओं के रुख़  में भले घुल रहो
इनसे लड़ने का दम भी जिगर में रखो 


जब भी मौक़ा मिले तुमको, ऐ मेरे दिल!
अपनी रूबाइयों की मरम्मत करो 


हम मुहाजिर हैं इस रहती दुनिया तलक
जब यहाँ से चलें सब तो बेरश्क हों 


मेरी तासीर ही मेरा मज़हब रहे
ये दुआ ही दवा हो, दफ़ा हो न हो 


जो है मेरा 'तख़ल्लुस', सलामत रहे 
चाहे कोई तग़य्युर ही कल क्यों न हो 

____________________________________
Written : April 2012 @ LT-14, AIET, Jaipur

13 comments:

  1. Frankly, likha toh acha h.. bt as i m a minor to urdu so could nt understand some words... waise very nycc lines... Keep the work on :)

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  2. खूबसूरत गज़ल.... उर्दू शब्दों के अर्थ भी देते तो समझने में आसानी होती

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  3. खूबसूरत गज़ल....

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  4. बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये. मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,,,,,,

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  5. hey hey!! this is a very nice website here and I just wanted to comment & say that you've done a great job here! Very nice choice of colors & layout, very easy on the eyes.. Nicely done!…

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  6. बहुत अच्छा भाव ,सुन्दर प्रस्तुति ,आप भी मेर ब्लॉग का अनुशरण करें ,ख़ुशी होगी
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