मैं अब कुछ बेवफ़ाई चाहता हूँ
कि ख़ुद से ही रिहाई चाहता हूँ
जज़्बो-बज़्म की जो रोशनी हैं
मैं उनकी रहनुमाई चाहता हूँ
ये जो भी मुझसे मेरे फ़ासले हैं
मैं इन सबकी जुदाई चाहता हूँ
सदा मेरी, ज़मीं से ताफ़लक, दो-
जहाँ में दे सुनाई, चाहता हूँ
'तख़ल्लुस' कुफ़्र की पहचान है ये
कि बन्दा हूँ, खुदाई चाहता हूँ
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Written : 2045-2058 Hours, Saturday, December 17, 2011
कि ख़ुद से ही रिहाई चाहता हूँ
जज़्बो-बज़्म की जो रोशनी हैं
मैं उनकी रहनुमाई चाहता हूँ
ये जो भी मुझसे मेरे फ़ासले हैं
मैं इन सबकी जुदाई चाहता हूँ
सदा मेरी, ज़मीं से ताफ़लक, दो-
जहाँ में दे सुनाई, चाहता हूँ
'तख़ल्लुस' कुफ़्र की पहचान है ये
कि बन्दा हूँ, खुदाई चाहता हूँ
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Written : 2045-2058 Hours, Saturday, December 17, 2011
बहुत खूब भाई..वाह
ReplyDeleteनीरज
बहुत ही खूब..
ReplyDeleteमैं अब कुछ बेवफ़ाई चाहता हूँ
ReplyDeleteकि ख़ुद से ही रिहाई चाहता हूँ
बहुत खूब....
आपके बाद ये सब चाहने वाला मै भी हूँ....:)
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा|
Thank you for being our teacher on this subject matter. I enjoyed your own article quite definitely and most of all enjoyed the way in which you handled the aspect I widely known as controversial. You happen to be always quite kind towards readers like me and help me in my life. Thank you.
ReplyDeleteThanks for your kind appreciation. :) Could I please know who you are? You can reach me at aryamanchetas@gmail.com
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