गर्दिश-ए-ख़याल से बाहर निकल के देख
ऐ यार मिरे! अपनी बनावट बदल के देख
मुश्किलें हालात से पैदा नहीं होतीं
आ बैठ, ज़रा सब्र की ताक़त में ढल के देख
रंगीन है ये दुनिया, रंगीन ज़माना
तू एक सितारे को उसकी शफ़क़ में देख
गुस्ताख़ हैं तहज़ीब के अंदाज़ निराले
अपने अदब से इनकी आदत सँभल के देख
दो दिन का कारवाँ है, फिर सब उजाड़ है
चल खोज, कहाँ इसमें तू है असल में देख
बिखरा पड़ा हुआ है सब नूर इल्म का
इक बार ज़रा घर से बाहर निकल के देख
मत कर मिजाज़पुर्सी अपने भी अक्स की
जो है तेरा 'तख़ल्लुस', उसमें पिघल के देख
ऐ यार मिरे! अपनी बनावट बदल के देख
मुश्किलें हालात से पैदा नहीं होतीं
आ बैठ, ज़रा सब्र की ताक़त में ढल के देख
रंगीन है ये दुनिया, रंगीन ज़माना
तू एक सितारे को उसकी शफ़क़ में देख
गुस्ताख़ हैं तहज़ीब के अंदाज़ निराले
अपने अदब से इनकी आदत सँभल के देख
दो दिन का कारवाँ है, फिर सब उजाड़ है
चल खोज, कहाँ इसमें तू है असल में देख
बिखरा पड़ा हुआ है सब नूर इल्म का
इक बार ज़रा घर से बाहर निकल के देख
मत कर मिजाज़पुर्सी अपने भी अक्स की
जो है तेरा 'तख़ल्लुस', उसमें पिघल के देख
बहुत खूब और दमदार।
ReplyDeleteशानदार गज़ल है आर्यमन !!!
ReplyDeleteबस जरा या तो टेक्स्ट का या फिर बेक ग्राउंड का रंग हल्का कर दो.पढ़ने में बहुत जान लगनी पढ़ रही है :)
वाह !!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गज़ल.............
लाजवाब शेर...
अनु
जबरदस्त लिखे हों भाई...|
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