..अब इस बार कुछ थोड़ा सा अलग...
न सुनने को कुछ है, न कहने को कुछ है
न तो आज दिल के बहकने को कुछ है
मेरी आरज़ू की बुलन्दी की खातिर
न दरिया मेँ कुछ है, न सहरा मेँ कुछ हैबताए ज़रा चाँद को भी तो कोई
न उसकी चमक मेँ दहकने को कुछ है
सूरज से कह दो मशालेँ जला ले
अभी और उसमेँ न जलने को कुछ है
गलतफ़हमियोँ मेँ है फूलोँ की बस्ती
कि हर पल वहाँ पर महकने को कुछ है
कँटीली सड़क पर ज़रा चल के देखो
तो मालूम होगा लहकने को कुछ है
बच्चे की किलकारियोँ की तरह से
अभी ज़िन्दगी मेँ कहकने को कुछ है
वो चिड़ियोँ के जैसे अभी घोँसलोँ मेँ
नयी भोर है तो चहकने को कुछ है
meine tumhari i hai ..ab se pahle kuchh geet aur tukbandi padhi thhee..achha likh rahe ho ..ek din tum zaroor chha jaaoge...
ReplyDeleteाच्छी कोशिश है लेकिन तुकबन्दी मे भी शब्दों का सही अर्थ निककले यही को शिश होनी चाहिये लहकने कहकने शब्द जचे नही। अन्यथा न लें भाव अच्छे हैं। शुभकामनायें।
ReplyDeleteअच्छा है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर लिखा आपने... शेयर करने के लिए थैंक्स ......
ReplyDeleteबच्चे की किलकारियोँ की तरह से
ReplyDeleteअभी ज़िन्दगी मेँ कहकने को कुछ है
masum pyare bhav liye rachna..... bahut sunder panktiyan
प्रयास अच्छा है. इसके पहले वाली कविता ज्यादा बेहतर लगी. भविष्य के लिए शुभकामनायें.
ReplyDeleteExcellent blog post, I have been reading into this a bit recently. Good to hear some more info on this. Keep up the good work!
ReplyDeletesimple though thoughtful... thats too a big art... waiting for your next post.
ReplyDeleteकल 16/05/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !