जीवन क्या है...???
एक निस्सार यात्रा,
जिससे अधिक सारगर्भित कुछ भी नहीं.
निस्संदेह,
हम जीते हैं--
एक चिर-विचारशील अवस्था में
जहां सभी बंधन
बंधहीन हो जाते हैं;
एक चिरंतन, शाश्वत तत्व का साक्षात्कार होता है,
प्रतिपल,
किन्तु
कोई अनजाना-सा गुबार
जैसे मानस को ढक लेता है
और....
आँखें बाध्य हो जाती हैं
आगे न देख सकने के लिए;
फिर..?
इस बाध्यता की पराकाष्ठा....
उस बिंदु पर
जहां अपरिमित अन्तर्निहित है,
जहां वे सब कुछ देखने को स्वतन्त्र हैं..
कैसा अजीब विरोधाभास...!!
किन्तु सत्य....!!!
एक चिरंतन, शाश्वत तत्व का साक्षात्कार होता है,
ReplyDeleteअध्यात्म की सुगन्ध बिखेरती सुन्दर रचना। बधाई।
अच्छी prastuti
ReplyDeletemaloom chale तो mujhe bhi bataiyega धन्यवाद |http://www.akashsingh307.blogspot.com/
धीरे धीरे सारे विरोधाभास स्पष्ट हो जायेंगे मित्र।।।
ReplyDeleteआर्यमन ,
ReplyDeleteकितने समय बाद तुमको पढ़ा ..जब से सृजन का सहयोग छूटा तब से तुमको नहीं पढ़ पायी ...यहाँ तक तुम्हारी टिप्पणी की वजह से आना हो सका ... शुक्रिया
तुम्हारी हर रचना इतनी गहन भाव लिए होती है कि थोड़ी देर मन उसमें ही डूब जाता है ..इस बात कि खुशी है कि अब तुमको पढ़ पाउंगी :):)
कृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
यही है जिंदगी .विरोधाभासों से भरी.बहुत दिनों बाद ( सालों ) तुम्हारा लिखा पढकर बहुत अच्छा लग रहा है.
ReplyDeleteसंगीता जी कि बात मानो .हटाओ ये वर्ड वेरिफिकेशन बहुत इरिटेट करता है.
बहुत सुन्दर रचना...अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteइस उम्र में इतनी गहराई लिए कही गयी आपकी रचना हतप्रभ कर देने वाली है...साहित्य में आप बहुत ऊंचा मुकाम हासिल करेंगे इसमें संदेह नहीं...मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं...
ReplyDeleteनीरज
Hi.. very informative post.
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