रे मन! जीवन-पथ बहुत कठिन है
कभी स्वच्छ, यह कभी मलिन है
आज हृदय रक्ताभ हो उठा मेरा
रक्तिम नयनों में आज रिक्तता छाई
कहाँ गयीं बचपन की वे आशाएँ?
कहाँ गयी यौवन की वह अँगड़ाई?
आज न रातें और न दिन हैं
रे मन! जीवन बहुत कठिन है
मानस में मेरे उथल-पुथल है छाई
इक नयी नाव, इक नयी नदी खे लायी
मझधार बीच नैया हिचकोले खाए
अनजान खिवैया खोज-खोज भरमाये
सलिल हुआ जाता विपथित है
रे मन! जीवन बहुत कठिन है
बचपन में मैंने देखी थी अमराई
इक झुकी डाल मेरे सपने में आयी
थे लदे आम मीठे उस पर बहुतेरे
पर चली अचानक गयी स्तब्ध पुरवाई
आता क्यों दिवा-स्वप्न प्रतिदिन है?
रे मन! जीवन बहुत कठिन है
लगे प्रभाकर आज पिघलने यों ही,
लगे हिमाचल-शिखर उबलने क्यों ही?
चाँदनी आज अङ्गारे बरसाती है,
चातकी रात सोने को भी जाती है!
आज यकायक थमा अनिल है
रे मन! जीवन बहुत कठिन है
उषा आज रवि-पथ लख सकुचाती है
लालिमा देख कर वसुधा घबराती है
जाने क्यों गोधूलि-अर्चना-वेला
विधु के स्वागत में नहीं नज़र आती है
प्रहर आठ बीतने कठिन हैं
रे मन! जीवन बहुत कठिन है
सम्बन्धों में निस्सार मूकता छायी
मित्रता रत्न-सम ख्याति छोड़ अकुलायी
हुए देव व्याकुल आहुति पाने को
जगती की वणिक्-वृत्ति रङ्ग ले आयी
संसृति एक अगण्य गणित है
रे मन! जीवन बहुत कठिन है
मेरी वह उल्लास-प्रबलता खोय
यह दशा निरख उल्लसित विकलता रो
अब विस्मृति भी अवसाद मिटा ना पाए
नीरवता भी चुपचाप यहीं पर सोयी
आज व्यथा ही स्वयं व्यथित है
रे मन! जीवन बहुत कठिन है
आज ह्रदय रक्ताभ हो उठा मेरा
ReplyDeleteरक्तिम नयनों में आज रिक्तता छाई
कहाँ गयीं बचपन की वे आशाएं?
कहाँ गयी यौवन की वह अंगडाई?
आज न रातें और न दिन हैं
रे मन! जीवन बहुत कठिन है
Bahot sunder abhivyakti....!!
बहुत ही वेहतरीन उम्मीद है आगे भी एसे ही लिखते रहेगे मेरी शुभ कामनाये आप के साथ है
ReplyDeleteसादर
प्रवीण पथिक
9971969084
raktim nayanon main aaj riktata chhai....yah riktata hi naye sundar srijan ka sanket de rahi hai.bahut sundar rachna badhai...
ReplyDeleteplz increase ur posts...
ReplyDeletehats off..very nice lines..keep it up :)
ReplyDeleteरे मन! जीवन बहुत कठिन है
ReplyDelete-क्या बात है..बहुत उम्दा!!!
बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई
ReplyDeleteकाफी समय से आपकी कोई रचना पढ़ने को नहीं मिली। ब्लाग के लिए भी तो थोड़ा समय निकालिए भाई।
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