Tuesday, November 05, 2019

ग़ज़ल

वो पैरहन बदलकर पैकर बदल रहे हैं
रातें बदल रही हैं, बिस्तर बदल रहे हैं

अरसे के' बाद घर पे मेहमान आ रहे हैं
तकिये बदल रहे हम चादर बदल रहे हैं

कॉलिज से' निकले' बच्चों की आँख में थकन है
ये नौ से' पाँच वाले दफ़्तर बदल रहे हैं

धोती-ओ'-कुर्ता' बदले तो पैण्ट-शर्ट आयीं
साड़ी बदल रही अब ज़ेवर बदल रहे हैं

हक़ की अदालतों में कर दर्ज़ जीत अपनी
बदली हैं' बीवियाँ, सो, शौहर बदल रहे हैं

इक आँख का सुकूँ भी है अब नहीं मयस्सर
भीतर बदल चुके थे, बाहर बदल रहे हैं

फिर साल से हुई है हरतालिका की' आमद
झुमके बदल रहे हैं, झूमर बदल रहे हैं

दिल्ली के' गोल मक्काँ, क़ानून भी नया कर
खिलजी बदल रहे हैं, जौहर बदल रहे हैं

दो गुट गले मिले हैं पुलिया की' दो तरफ़ के
ईंटें बदल रहे हैं, पत्थर बदल रहे हैं

कुछ तो नया चुभे है, ज्यों-ज्यों ये' दोस्तों के -
लश्कर बदल रहे हैं, नश्तर बदल रहे हैं

आज़ादियाँ मनाएँ, हों हमअदद हमारे
होने को' आये' अस्सी, सत्तर बदल रहे हैं

नदियाँ समुन्दरों को अब किस तरह निबाहें
राहें बदल रही हैं, रहबर बदल रहे हैं

यादें जिये बुढ़ापा, बचपन से' फिर जवानी
गट्ठर बदल रहे हैं, छप्पर बदल रहे हैं

अधजल रही हमेशा, पूरी भरी न रीती
हरदम रही छलकती, गागर बदल रहे हैं

बदली ग़ज़ल कि "चेतस" मक़्ता बदल रहा है
काशी बदल गयी है, मगहर बदल रहे हैं

~ अर्यमन चेतस

अपराह्न ०७:१७, मङ्गलवार, ०५ नवम्बर २०१९
भुवनेश्वर, ओडिशा

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