मैं लिखता हूँ
या लिख देता हूँ
या कि कागज़ पर स्याही से यूँ ही कुछ बना देता हूँ
पता नहीं..
लेकिन ज़रूरी नहीं कि जो कुछ लिखा गया
वो मेरे साथ घटा भी हो
देखता-सुनता हूँ मैं
अपने आस-पास
चीज़ों को,
लोगों को
कभी नहीं भी देखता,
नहीं भी सुनता
केवल सोच भर लेता हूँ
लेकिन हाँ,
इतना पक्का है
कि कागज़ पर उतारने से पहले
महसूस ज़रूर कर लेता हूँ
लिखना,
शायद महसूस किये बिना सम्भव नहीं..
___________________________________
1757 Hours, Tuesday, May 13, 2014
या लिख देता हूँ
या कि कागज़ पर स्याही से यूँ ही कुछ बना देता हूँ
पता नहीं..
लेकिन ज़रूरी नहीं कि जो कुछ लिखा गया
वो मेरे साथ घटा भी हो
देखता-सुनता हूँ मैं
अपने आस-पास
चीज़ों को,
लोगों को
कभी नहीं भी देखता,
नहीं भी सुनता
केवल सोच भर लेता हूँ
लेकिन हाँ,
इतना पक्का है
कि कागज़ पर उतारने से पहले
महसूस ज़रूर कर लेता हूँ
लिखना,
शायद महसूस किये बिना सम्भव नहीं..
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1757 Hours, Tuesday, May 13, 2014
बहुत अच्छा लिखा है आपने ऐसा लग रहा है जैसे मेरे मन की बातें लिख दी हों।
ReplyDeleteकभी मौका मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी पधारें http://kaynatanusha.blogspot.in/