अपनी तन्हाइयों से मुहब्बत करो
अब चलो ग़म ग़लत करके आगे बढ़ो
ये इशारे जो करती हैं खामोशियाँ
इनको समझो, परखने की जिद ना करो
इन हवाओं के रुख़ में भले घुल रहो
इनसे लड़ने का दम भी जिगर में रखो
जब भी मौक़ा मिले तुमको, ऐ मेरे दिल!
अपनी रूबाइयों की मरम्मत करो
हम मुहाजिर हैं इस रहती दुनिया तलक
जब यहाँ से चलें सब तो बेरश्क हों
मेरी तासीर ही मेरा मज़हब रहे
ये दुआ ही दवा हो, दफ़ा हो न हो
जो है मेरा 'तख़ल्लुस', सलामत रहे
चाहे कोई तग़य्युर ही कल क्यों न हो
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Written : April 2012 @ LT-14, AIET, Jaipur
अब चलो ग़म ग़लत करके आगे बढ़ो
ये इशारे जो करती हैं खामोशियाँ
इनको समझो, परखने की जिद ना करो
इनसे लड़ने का दम भी जिगर में रखो
जब भी मौक़ा मिले तुमको, ऐ मेरे दिल!
अपनी रूबाइयों की मरम्मत करो
हम मुहाजिर हैं इस रहती दुनिया तलक
जब यहाँ से चलें सब तो बेरश्क हों
मेरी तासीर ही मेरा मज़हब रहे
ये दुआ ही दवा हो, दफ़ा हो न हो
जो है मेरा 'तख़ल्लुस', सलामत रहे
चाहे कोई तग़य्युर ही कल क्यों न हो
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Written : April 2012 @ LT-14, AIET, Jaipur