Tuesday, May 13, 2014

सीमा

कलम लिखती है
सब कुछ
जो उससे लिखवाया जाये
जैसे उसे घुमाया जाये

कभी सच,
तो कभी बस कल्पना
कभी कुछ कम,
कभी कुछ ज़्यादा भी

हाँ,
सुख-दुःख भी..

सुख सुन्दर होते हैं
अज़ीज़ होते हैं
अपने भी हो सकते हैं
किसी और के भी
पढ़े जाते हैं
किसी और के हों तो जल्दी भुला दिए जाते हैं
अपने हों तो ख़ुशी एक और बार महसूस करवा जाते हैं

दुःख..?
वे भी पढ़े जाते हैं
किसी और के हों तो भुला दिए जाते हैं
अपने हों तो भूले हुए भी याद आ जाते हैं
घाव हरा कर देते हैं
छील देते हैं

फिर..?
कलम खुद दुखी होती है
बिना किसी के अतीत को कुरेदे
वह पूर्णता नहीं दिखा पाती

यह सीमा है उसकी
अनचाही,
लेकिन बस,
है..
_____________________________________
1827 Hours, Tuesday, May 13, 2014

3 comments:

  1. विचारणीय रचना .... इसी अपूर्णता भरी पूर्णता को समझना कठिन है ....

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  2. अति सुन्दर रचना।

    ReplyDelete
  3. दुःख..?
    वे भी पढ़े जाते हैं
    किसी और के हों तो भुला दिए जाते हैं
    अपने हों तो भूले हुए भी याद आ जाते हैं
    घाव हरा कर देते हैं
    छील देते हैं
    ..
    सच तो यही है कि दुःख खुद ही झेलना पड़ता है
    ....गंभीर चिंतन से भरी रचना

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