स्वकीयता और परकीयता -
पारस्परिक वैलोम्य में अवगुण्ठित दो भाव,
एक-दूसरे की वैयक्तिकता की गरिमा का
सम्मान करते हुए,
अपनी शुचिता की मर्यादा में रहते हुए...
सर्वथा विपरीत,
किन्तु..एक-दूसरे के चिर-पूरक...
सदैव एकाकी,
किन्तु..स्वयमेव परिपूर्ण...
एक-दूसरे की विरोधी उपस्थिति के सत्य से अभिज्ञ,
किन्तु..आत्म-संतुष्ट...
एक-दूसरे के परिमाण द्वारा निर्णीत,
किन्तु..व्यापक...
बाँटते हुए एक सुखद अनुभव,
सह-जीविता का..!!
आओ सीखें...
पारस्परिक वैलोम्य में अवगुण्ठित दो भाव,
एक-दूसरे की वैयक्तिकता की गरिमा का
सम्मान करते हुए,
अपनी शुचिता की मर्यादा में रहते हुए...
सर्वथा विपरीत,
किन्तु..एक-दूसरे के चिर-पूरक...
सदैव एकाकी,
किन्तु..स्वयमेव परिपूर्ण...
एक-दूसरे की विरोधी उपस्थिति के सत्य से अभिज्ञ,
किन्तु..आत्म-संतुष्ट...
एक-दूसरे के परिमाण द्वारा निर्णीत,
किन्तु..व्यापक...
बाँटते हुए एक सुखद अनुभव,
सह-जीविता का..!!
आओ सीखें...
बहुत खूबसूरत शब्दों में सह जीविता का पाठ पढाया ..
ReplyDeleteसीखना जारी है और हर कदम पर कुछ न कुछ सीख रहे हैं. हर लम्हा हमें कुछ सिखाता है. आपने सुंदर लिखा.
ReplyDeleteदुनाली पर देखें
बाप की अदालत में सचिन तेंदुलकर
कृति मे उधृत भावों की वास्तविक जीवन से सह- जीवित... आओ सीखें !!! प्रशंसनीय गठन, सुन्दर रचना .
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद मेरे ब्लॉग तक पहुँचाने के लिए ...!!
ReplyDeleteआपका लेखन भी उत्कृष्ट है ...!! बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ...!!
अनेक शुभकामनायें ...!!
सहजीन का यह भाव सीखते रहना होगा, सुन्दर शब्दकारी।
ReplyDeleteमित्र ,शब्द शिलाओं का समुन्नत प्रयोग ऐसे करेंगे तो ताजमहल का क्या होगा ? ए अच्छी बात नहीं . अस्तित्व बचा रहने दो भाई .... / संयत साहित्य विधा का कुशल प्रदर्शन सराहनीय है जी /बहुत -२ बधाई ...
ReplyDeletesah jeewta ka sunder vishleshan.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ... सहजीविता के भाव समेटे अति उत्तम अभिव्यक्ति ..शुभकामनायें ...
ReplyDeleteवाह .. बहुत बढि़या ।
ReplyDeleteवाह ……………बहुत सुन्दर ढंग से पाठ पढाया है…………अति सुन्दर्।
ReplyDeleteHi.. very informative post.
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