Sunday, March 16, 2014

"बहुत क्रांतिकारी"

हालाँकि मैं "आम आदमी पार्टी" की विचारधारा से कई मुद्दों पर सहमत नहीं हूँ, फिर भी जब वे आये थे तब के उनके उद्देश्य के साथ आज भी मेरा मत है.. पढ़िए एक रचना..आज ही सुबह लिखी है..

कोई प्रधानमन्त्री बनकर कुर्सी पर चुप हो बैठा है
कोई अपने दल के भीतर ही झगड़ों वाला नेता है
सब बेईमान दल कर बैठे हैं आपस में ही साँठ-गाँठ
कुछ पत्रकार भी मिले हुए देते हैं इनका खूब साथ
चोर-चोर, मौसेरे भाई मिलकर डाका डाल रहे
अब गरीब के सिर पर छत न घर में आटा-दाल रहे
पैसे वाले लोगों के हाथों नाच रही हैं सरकारें
बेबस जनता को फुटपाथों पर कुचले जाती हैं कारें
जनता मरती है, मरा करे और ये महलों में ऐश करें
देखें गरीब की अर्ज़ी तो तेवर दिखलायें, तैश करें
पैंसठ सालों की आज़ादी अपने होने पर रोती है
यह राजनीति के चूल्हे पर सिकती स्वदेश की रोटी है

भ्रष्टाचारों के पेड़ सदा उलटे होकर ही बढ़ते हैं
हैं सभी जड़ें इसकी ऊपर, नीचे तो केवल पत्ते हैं
खोखली जड़ें ये करने को हम इनमें मट्ठा डालेंगे
पहला प्रयास तो करें तभी जनता का झंडा गाड़ेंगे
हम संविधान की मर्यादा में ही आवाज़ उठाते हैं
गाँधी के रस्ते पर चलते, हम दंगे नहीं कराते हैं
पर धरने करके देख लिए, हम अनशन करते मर जाएँ!
कुत्ते की पूँछ न सीधी हो, ये नेता क्या कुछ कर जाएँ!
ये चिकने घड़े बने बैठे, जूँ नहीं रेंगती कानों पर
इनको तो तरस नहीं आता जाती किसान की जानों पर
सीधी उँगली घी न निकला तो टेढ़ी करके आये हैं
हम जनता की आवाज़ों को संसद में रखने आये हैं

जब राजनीति में आये हैं, कुछ राजनीति करनी होगी
युगधर्म निभाना ही होगा, तय रणनीति करनी होगी
भारत के हर इक कोने में अब राजधानियाँ बनवाएँ
अब लें सुभाष का नाम, "चलो दिल्ली" का नारा लगवाएँ
अपने-अपने घर से निकलें, अपने नेता हम "आप" बनें
संतान बनें अच्छी-सच्ची, भारत माता का ताप हरें

आया है रंगों का मौसम तो लोकतन्त्र का रंग चढ़े
संसद स्वागत में झूम उठे जब जनता उसकी ओर बढ़े
"हम, भारत के लोग" दिवाली-होली रोज़ मनाएँगे
"भारत माता की जय" होगी जब हम बच्चे सुख पाएँगे
आकण्ठ भ्रष्ट यह देश कभी जब मुक्त हृदय हो गायेगा
हाँ, "बहुत क्रांतिकारी" अवश्य इतिहास तभी कहलायेगा
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0946 Hours/Sunday/March 16/2014

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