ज़हन-ज़हन में चमकने वाली ज़हीनतर कहकशाँ मुबारक
अपनी-अपनी तरह से सबको अपना-अपना नशा मुबारक
कहा इशारों में पत्थरों ने हुए मुख़ातिब जब आइनों से
तुम्हें है अपना गुमाँ मुबारक, हमें भी अपना मुकाँ मुबारक
जब उल्फ़तों की ख़ुशी मनाओ, रखो दिलों में न कोई शिकवा
कि जो मिला, जिस तरह मिला है, रहे सदा हमनवाँ मुबारक
किये तवारीख़ ने सितम गर, सितमगरों का हुकुम बजाया
वो मिट चुकी सारी हुक्मरानी, नयी पुरबिया हवा मुबारक
जो ज़िन्दगी के परे मिलेगा, क्यों फ़िक्र उसकी तुम्हें खपाये
है ख़ुश 'तख़ल्लुस', उसे हुए हैं यहीं पे दोनों जहाँ मुबारक
०२:४९ अपराह्न, १९ मार्च २०१७ | भुवनेश्वर, ओडिशा
No comments:
Post a Comment
आपके विचार ……