Wednesday, May 14, 2014

लिखना..

मैं लिखता हूँ
या लिख देता हूँ
या कि कागज़ पर स्याही से यूँ ही कुछ बना देता हूँ

पता नहीं..

लेकिन ज़रूरी नहीं कि जो कुछ लिखा गया
वो मेरे साथ घटा भी हो
देखता-सुनता हूँ मैं
अपने आस-पास
चीज़ों को,
लोगों को

कभी नहीं भी देखता,
नहीं भी सुनता
केवल सोच भर लेता हूँ

लेकिन हाँ,
इतना पक्का है
कि कागज़ पर उतारने से पहले
महसूस ज़रूर कर लेता हूँ

लिखना,
शायद महसूस किये बिना सम्भव नहीं..
___________________________________
1757 Hours, Tuesday, May 13, 2014

1 comment:

  1. बहुत अच्छा लिखा है आपने ऐसा लग रहा है जैसे मेरे मन की बातें लिख दी हों।
    कभी मौका मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी पधारें http://kaynatanusha.blogspot.in/

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