Thursday, October 25, 2012

तासीर.. ! ?

अपनी तन्हाइयों से  मुहब्बत करो
अब चलो ग़म ग़लत करके आगे बढ़ो 


ये इशारे जो करती हैं खामोशियाँ
इनको समझो, परखने की जिद ना करो 


इन हवाओं के रुख़  में भले घुल रहो
इनसे लड़ने का दम भी जिगर में रखो 


जब भी मौक़ा मिले तुमको, ऐ मेरे दिल!
अपनी रूबाइयों की मरम्मत करो 


हम मुहाजिर हैं इस रहती दुनिया तलक
जब यहाँ से चलें सब तो बेरश्क हों 


मेरी तासीर ही मेरा मज़हब रहे
ये दुआ ही दवा हो, दफ़ा हो न हो 


जो है मेरा 'तख़ल्लुस', सलामत रहे 
चाहे कोई तग़य्युर ही कल क्यों न हो 

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Written : April 2012 @ LT-14, AIET, Jaipur

Thursday, October 11, 2012

??..चाहता हूँ..!!

मैं अब कुछ बेवफ़ाई चाहता हूँ
कि ख़ुद से ही रिहाई चाहता हूँ

जज़्बो-बज़्म की जो रोशनी हैं
मैं उनकी रहनुमाई चाहता हूँ

ये जो भी मुझसे मेरे फ़ासले हैं
मैं इन सबकी जुदाई चाहता हूँ

सदा मेरी, ज़मीं से ताफ़लक, दो-

जहाँ में दे सुनाई, चाहता हूँ


'तख़ल्लुस' कुफ़्र की पहचान है ये
कि बन्दा हूँ, खुदाई चाहता हूँ
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Written : 2045-2058 Hours, Saturday, December 17, 2011
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